कैसी रही कंगना की फिल्म इमरजेंसी? क्या कंगना का इंदिरा गांधी का किरदार निभाना किसी नए बहस को छेड़ेगा?

Emergency Movie Review: कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी आज सिनेमा घरों में रिलीज हो चुकी है, इस फिल्म में कंगना, स्वर्गीय कांग्रेस लीडर और भारत की पहली महिला प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की भूमिका निभा रही हैं। कंगना का इंदिरा गांधी का किरदार निभाने की कोशिश करना कुछ दर्शकों को काफी हास्यास्पद लगा, जिसके बाद यह सवाल उठ रहा है कि यह किरदार कहीं किसी नए राजनीतिक बहस को जन्म तो नहीं देगा?
दर्शकों का फिल्म को लेकर रिव्यू
एक दर्शक ने फिल्म देखने के बाद अपना एक्सपीरियंस बताया उन्होंने कहा कि मैं इमरजेंसी देखने के लिए थिएटर के अंदर गया और कंगना रनौत के चेहरे पर कृत्रिम नाक और जो उन्हें स्वर्गीय इंदिरा गांधी की तरह दिखने में मदद करने की कोशिश कर रही थी और चेहरे पर अनिच्छुक नैतिक हरकतें यह स्पष्ट कर रही थी कि यह एक व्यंग्यात्मक चित्रण होने जा रहा है। फिल्म समीक्षा आमतौर पर कहानी और गति के बारे में कुछ बताने से शुरू होती है ना कि सीधे तौर पर अभिनेताओं की कमियों के बारे में बताने से लेकिन जैसा कि वह फिल्म में कर रहीं है, कि “Indira is India and India is Indira” इमरजेंसी भी कंगना की वजह से ही एक फिल्म के रूप में टिकी है, जो चीजों के आगे बढ़ाने के साथ-साथ इसके बारे में आपकी धारणा को भी बदल देगी।
आपातकाल का आधार क्या था ?
यह राजनीतिक ट्रेलर 1975 में भारत में आपातकाल लागू करने वाली घटनाओं पर आधारित है। दिवंगत सतीश कौशिक, श्रेयस तलपडे और अनुपम खेर जैसे सहायक कलाकारों के साथ फिल्म का विषय राजनीति विज्ञान के पाठ जैसा लगता है। फिल्म में आपातकाल लागू करने के लिए इंदिरा गांधी के पश्चाताप को भयावह दर्पण प्रतिबिंबों के माध्यम से दर्शाया गया है। फिल्म का क्रियान्वयन कमजोर पड़ता है और पहले भाग में कुछ खास कहानी नहीं दिखती। मध्यांतर तक इंदिरा आपातकाल की घोषणा करती हैं और तब तक दर्शकों को यह फिल्म काफी बोरिंग भी लगने लगती है।
फिल्म में इंदिरा गांधी को बदनाम करने की कोई साजिश नहीं
इमरजेंसी फिल्म में इंदिरा गांधी के कामों को छिपाने या उन्हें बदनाम करने की कोई इच्छा नहीं दिखाई देती। इमरजेंसी के दौरान उनकी निगरानी में क्या हुआ उनके बेटे संजय गांधी की मौत। निर्देशक कंगना ने इसे संतुलित रखने की कोशिश की है भूमिका की मांग के अनुसार अनुपम ने संयमित अभिनय किया है जबकि दिवंगत सतीश ने सिर्फ एक लाइन में अपनी योग्यता साबित कर दी है। संक्षिप्त में इमरजेंसी की एक ही फिल्में ज्यादा से ज्यादा चीज समझने की होने इसे कमजोर कर दिया। अगर अच्छी एक्टिंग देखना चाहते हैं तो यह देखने लायक है लेकिन फिर आकर्षक कहानी के बिना अच्छी एक्टिंग का क्या मतलब? लेकिन जहां यह फिल्म एक अच्छी एक्टिंग पर निर्भर कर रही है वहीं दूसरी तरफ इस फिल्म की कहानी और इसे दिखाने की कोशिश से नए राजनीतिक मुद्दों को हवा मिलेगी।